स्कूली पढ़ाई के साथ प्राइवेट ट्ïयूशन पर राष्टï्रीय सैम्पल सर्वेक्षा
कार्यालय द्वारा किए गए सर्वे में ट्ïयूशन का प्रमाा देश के स्कूलों में
पढ़ाई की क्षमता को उजागर करता है. एक ओर हम शिक्षा का दर्जा बढ़ाने की
ाात करते हैं नई तकनीक अपनाने की सलाह देते हैं दूसरी ओर छााों को इन
सबके लिए निजी कोचिंग लेनी पड़ रही है. शैक्षिाक दर्जा सुधारने के लिए
निजी स्कूलों को धड़ाधड़ मायता दे रहे हैं
दूसरी ओर स्थानीय निकायों द्वारा संचालित शालाएं खाली हो रही हैं. हम भी बड़े गौरव के साथ कहते हैं ’हमारा बचा फलां-फलां स्कूल कालेज में पढ़ता है.Ó दूसरी ओर इहीं बचों को प्राइवेट कोचिंग भी दे रहे हैं. सर्वेक्षा के अनुसार देश के 23.1 फीसदी छाा और 28 फीसदी छाााएं प्राइवेट ट्ïयूशन ले रही हैं. इसका मतलब साफ है कि स्कूल-कालेजों में पढ़ाने वाले शिक्षक सक्षम नहीं हैं या फिर उहें सक्षम बनाने के लिए सरकार के पास कोई योजना नहीं है. शायद यही कारा है कि शिक्षक केवल नौकरी कर रहे हैं. अयापन जैसे पविा और अहम कार्योंे में यह सोच बनती गई तो हमें स्कूल-कालेज बंद करने पड़ेंगे और प्राइवेट ट्ïयूशनवालों को मायता देनी पड़ेगी. दरअसल सेवारत शिक्षकों-अयापकों पर ट्ïयूशन लेने की पाबंदी है लेकिन नियमों पर अमल कौन करे. जिस तरह निजी शैक्षिाक संस्ााओं को बढ़ावा दिया जा रहा है वह छााों के भविष्य के लिए भी खतरनाक साबित हो सकता है. देश के कर्ाधारों और शिक्षाविदों को इस स्थिति पर गंभीर मंथन कर शालाओं के शिक्षकों को सक्षम बनाने की योजना पर विचार करना चाहिए ताकि हमारे भविष्य के कर्ाधारों को अछी शिक्षा मुहैया हो सके. ट्ïयूशन का बढ़ता प्रमाा देश में स्कूलों में पढ़ाई की क्षमता उजागर कर रहा है. एनएसएसओ का सर्वेक्षा आंखें खोलने के लिए तो बाय कर ही रहा है शिक्षकों की क्षमता पर भी प्रश्ïनचिह्नï लगा रहा है.
दूसरी ओर स्थानीय निकायों द्वारा संचालित शालाएं खाली हो रही हैं. हम भी बड़े गौरव के साथ कहते हैं ’हमारा बचा फलां-फलां स्कूल कालेज में पढ़ता है.Ó दूसरी ओर इहीं बचों को प्राइवेट कोचिंग भी दे रहे हैं. सर्वेक्षा के अनुसार देश के 23.1 फीसदी छाा और 28 फीसदी छाााएं प्राइवेट ट्ïयूशन ले रही हैं. इसका मतलब साफ है कि स्कूल-कालेजों में पढ़ाने वाले शिक्षक सक्षम नहीं हैं या फिर उहें सक्षम बनाने के लिए सरकार के पास कोई योजना नहीं है. शायद यही कारा है कि शिक्षक केवल नौकरी कर रहे हैं. अयापन जैसे पविा और अहम कार्योंे में यह सोच बनती गई तो हमें स्कूल-कालेज बंद करने पड़ेंगे और प्राइवेट ट्ïयूशनवालों को मायता देनी पड़ेगी. दरअसल सेवारत शिक्षकों-अयापकों पर ट्ïयूशन लेने की पाबंदी है लेकिन नियमों पर अमल कौन करे. जिस तरह निजी शैक्षिाक संस्ााओं को बढ़ावा दिया जा रहा है वह छााों के भविष्य के लिए भी खतरनाक साबित हो सकता है. देश के कर्ाधारों और शिक्षाविदों को इस स्थिति पर गंभीर मंथन कर शालाओं के शिक्षकों को सक्षम बनाने की योजना पर विचार करना चाहिए ताकि हमारे भविष्य के कर्ाधारों को अछी शिक्षा मुहैया हो सके. ट्ïयूशन का बढ़ता प्रमाा देश में स्कूलों में पढ़ाई की क्षमता उजागर कर रहा है. एनएसएसओ का सर्वेक्षा आंखें खोलने के लिए तो बाय कर ही रहा है शिक्षकों की क्षमता पर भी प्रश्ïनचिह्नï लगा रहा है.
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