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फर्जी प्रमाणपत्रों की जांच आसान नहीं

खगड़िया/परबत्ता: जिले में बीते कुछ सप्ताह से नियोजित शिक्षकों के प्रमाणपत्रों की जांच की प्रक्रिया चल रही है. इस क्रम में सभी नियोजन इकाइयों से प्रमाणपत्रों समेत सभी आवश्यक दास्तावेजों मेधा सूची की छायाप्रति की मांग की गयी है. इन दास्तावेजों को उच्च न्यायालय के निर्देश के आलोक में जांच करने वाली एजेंसी बिहार सरकार की निगरानी विभाग को उपलब्ध कराया जायेगा. निगरानी विभाग के पदाधिकारी जिला मुख्यालय में कई बार बैठक कर प्रपत्र भी जारी कर चुके हैं. 21  बिंदुओं के इस प्रपत्र में सभी शिक्षकों का ब्योरा जमा करने का निर्देश दिया गया था. उसे बढ़ाकर अब 29 बिंदुओं का प्रपत्र जारी किया गया है. नियोजन इकाइयों को इस प्रपत्र के अलावा सीडी में विवरण मांगा गया है.
 
क्या है काम की स्थिति
प्रखंड में इस जांच को लेकर स्थिति काफी लचर है. जिला में आयोजित निगरानी के पदाधिकारी तथा शिक्षा विभाग के पदाधिकारियों के संयुक्त बैठक में सात जून तक सभी नियोजन इकाइयों को प्रमाणपत्र जमा करने का निर्देश दिया गया था. प्रखंड के सभी पंचायतों ने जांच के लिए कागजात उपलब्ध करा दिया है. लेकिन अधिकांश पंचायतों में नियोजन का मूल अभिलेख नहीं मिल रहा है, किंतु सचिवों ने जैसे-तैसे कर इसे उपलब्ध करा दिया है. माना जा रहा है कि जांच में खरा उतरने वाले शिक्षकों को ही वेतन दिया जायेगा. प्रखंड में नियोजित शिक्षकों को फरवरी माह के बाद से वेतन नहीं मिला है.
 
भरे जा रहे हैं पुन: आवेदन
अधिकांश नियोजन ईकाईयों के पास नियोजन से संबंधित अभिलेख का प्रभार में नहीं मिलने या अभिलेख सुरक्षित नहीं रहने के कारण निगरानी द्वारा मांगे जाने पर कई पंचायतों में फिर से आवेदन भरवाया जा रहा है. इसके लिये पुराने आवेदनपत्र का प्रपत्र का फिर से उपयोग किया जा रहा है. विगत दो सप्ताह से प्रखंड मुख्यालय परिसर में धड़ल्ले से कैंप लगाकर नियोजन के कागजात दुरुस्त किया जा रहा है.
 
गड़बड़ रिपोर्ट से शिक्षकों की बढ़ सकती है परेशानी
मामले में सही प्रमाणपत्र पर नियोजित कुछ शिक्षकों की परेशानी बढ़ सकती है. दरअसल अधिकांश नियोजन इकाई के सचिवों ने निगरानी को उपलब्ध कराने के लिये जो रिपोर्ट तैयार कराया है. उसमें कई कमी है. रॉल नंबर, रॉल कोड या सत्र के टंकण की गलती से जांच का परिणाम में अंतर हो सकता है.
 
अभिलेख उपलब्ध कराना कठिन चुनौती
शिक्षा विभाग के लिये निगरानी को नियोजन से संबंधित अभिलेख उपलब्ध कराना एक कठिन चुनौती रहा. अधिकांश नियोजन इकाई के सचिवों को अपने पूर्व के सचिवों से विधिवत प्रभार नहीं मिला था. इसके अलावा जोरावरपुर , माधवपुर तथा दरियापुर भेलवा पंचायत के सचिव का सेवाकाल में ही निधन होने से अभिलेख उपलब्ध होने की राह कठिन है. वहीं तेमथा करारी तथा सौढ उत्तरी पंचायत के सचिव के निलंबन के पश्चात अभी तक प्रभार नहीं दिये जाने के कारण इस दोनों पंचायतों का अभिलेख भी निगरानी जांच के लिये उपलब्ध कराना नामुमकिन लग रहा था.
 
संदेह के घेरे में कई प्रमाणपत्र
प्रखंड के विभिन्न नियोजन इकाइयों द्वारा निगरानी को उपलब्ध कराये जा रहे प्रमाणपत्रों की वैधता ही संदेह के घेरे में है. दरअसल जांच में लगाये गये निगरानी विभाग के पदाधिकारी ने नियोजन इकाइयों के सचिवों से जांच के लिये नियोजन के समय अभ्यर्थियों द्वारा आवेदन के साथ लगाये गये प्रमाणपत्रों की छायाप्रति मांगा है. अधिकांश नियोजन इकाई के पास यह अभिलेख सुरक्षित अवस्था में उपलब्ध नहीं है. ऐसी स्थिति में नियोजन इकाई द्वारा शिक्षकों से ही छायाप्रति लेकर निगरानी को उपलब्ध कराया जा रहा है. इसके अलावा कई इकाइयों द्वारा इस जांच के लिए निगरानी को उपलब्ध कराये जाने वाले रिपोर्ट बनाने में उन्हीं शिक्षकों को लगाया गया था. इन शिक्षकों के प्रमाणपत्रों की जांच होना है. ऐसे में इस जांच के पूरा होने के पूर्व ही अंगुली उठनी शुरू हो गयी है.

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