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शिक्षकों पर एक और बोझ

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आम लोगों के लिए लागू की गई प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना के लक्ष्यों को प्राप्त करने की जिम्मेदारी प्रदेश के कई स्थानों पर अघोषित रूप से शिक्षकों को सौंपी जा रही है। लक्ष्य पूरे न करने की स्थिति में उनका वेतन तक रोका जा रहा है। यह एक गंभीर और विचारणीय मुद्दा है। एक ओर तो सरकार शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू कर सभी बच्चों को शिक्षा उपलब्ध करवाना चाहती है, स्कूलों में अधिकाधिक बच्चों को लाने के लिए स्कूल चलें हम जैसे अभियान चलाती है, वहीं दूसरी ओर जब भी मौका मिलता है,
वह शिक्षकों को गैर शैक्षणिक कार्यों में बगैर सोचे समझे लगा देती है। विरोध के स्वर उठने पर सरकार हर बार यह वादा करती है, आश्वासन देती है कि शिक्षकों को गैर शैक्षणिक कार्यों में नहीं लगाया जाएगा, लेकिन ये आश्वासन धरे रह जाते हैं। चाहे जनगणना हो, पशुगणना हो, संसद से लेकर स्थानीय निकाय तक के चुनाव हों या फिर इस तरह के और भी काम।


लगता है सरकार को शिक्षक ही ऐसे सरकारी कर्मचारी नजर आते हैं, जिनका वास्तविक कार्य महत्वहीन या गैर-जरूरी है। सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर कैसा है, यह बताने की कतई आवश्यकता नहीं है। पालक अपने बच्चों को बहुत ही मजबूरी में इन स्कूलों में दाखिला दिलवाते हैं वरना उनकी पहली प्राथमिकता प्रायवेट स्कूल ही होते हैं। आवश्यकता इस बात की है कि सरकार शिक्षकों को गैर जरूरी कार्यों में न लगाकर सरकारी स्कूलों और शिक्षकों के स्तर में सुधार के उपाय करे ताकि शिक्षा की स्थिति बेहतर हो सके। इसके साथ ही वृहद पैमाने वाली योजनाओं को लागू करते समय यह देखना भी जरूरी है कि उसे अमल में लाने के लिए पर्याप्त संसाधन और अमला मौजूद है या नहीं? उनकी उपयोगिता कितनी है और क्या वे अपने उद्देश्यों में सफल हो पाएंगी। प्रधानमंत्री जनधन योजना, प्रधानमंत्री जीवन ज्योति योजना, प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना और अटल पेंशन योजना की शुरूआत की है। इनमें से कुछ योजनाएं केवल आंकड़ों की उपलब्धि हासिल करने वाली ही साबित हो रहीं हैं। जनधन योजना में बैंकों में शून्य बैलेंस पर करोड़ों खाते तो खोल दिए गए हैं, लेकिन उनमें से अधिकांश में लेनदेन नहीं हो रहा है क्योंकि खाताधारकों के पास जमा करने के लिए पैसे ही नहीं है और उनके रखरखाव पर ही बैंकों की बड़ी राशि खर्च हो रही है। ऐसी योजनाओं को उपयोगी बनाने के लिए पुनर्विचार की जरूरत है। साथ ही यह भी देखा जाना चाहिए कि उनके क्रियान्वयन के लिए पर्याप्त संसाधन हों और शिक्षकों को ऐसी योजनाओं की बजाय शिक्षण ही करने दिया जाए। 

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