ग्वालियर। प्रदेश के 21 जिलों में शिक्षकों की पोस्टिंग के मामले में जमकर मनमानी की जा रही है। इन जिलों में शिक्षा विभाग के अफसरों ने युक्तियुक्तकरण प्रक्रिया पूरी किए बगैर ही अतिथि शिक्षकों की भर्ती शुरू कर दी है। वह इसलिए क्योंकि अपने चहेतों को शहर के स्कूल से हटाकर गांव न भेजना पड़े। दरअसल, प्रदेश में आठ हजार से अधिक शिक्षक अतिशेष हैं।
नियमानुसार पहले इन अतिशेष को उन स्कूलों में भेजना था, जहां शिक्षकों की कमी है। उसके बाद यदि जरूरत पड़ती है तो ही अतिथि शिक्षकों की भर्ती की जानी थी। मालूम हो कि शहर के स्कूलों में छात्र संख्या के अनुपात में शिक्षकों की संख्या बहुत अधिक है, जबकि ग्रामीण इलाके के स्कूल इक्का-दुक्का शिक्षकों के भरोसे ही चल रहे हैं।
क्या है युक्तियुक्तकरण प्रक्रिया
जिन स्कूलों में शिक्षकों की संख्या छात्रों के अनुपात (तीस बच्चों पर एक शिक्षक) में अधिक है, वहां के शिक्षकों को उन स्कूलों में भेजना है, जहां बच्चों की संख्या कम है। जिन स्कूलों में जरूरत से ज्यादा शिक्षक हैं, उन्हें ही अतिशेष है। शहर के स्कूलों में अधिकारियों से मिलीभगत कर शिक्षक पहले तो अटैचमेंट करा लेते हैं। फिर जब सत्र के शुरुआत में युक्तियुक्तकरण प्रक्रिया होती है तो उसे किसी न किसी तरह विवादित करवाकर यही अतिशेष शिक्षक शासन से रोक लगवा लेते हैं।
ऐसा करने से अतिशेष शिक्षकों को ही फायदा होता है, क्योंकि रोक के बाद अतिशेष को हटाकर गांवों के स्कूल में नहीं भेजा जाता। गांवों के स्कूलों में अस्थाई तौर पर शिक्षकों की कमी दूर करने के लिए अतिथि शिक्षकों की भर्ती शुरू कर दी जाती है। होशंगाबाद, ग्वालियर, दतिया, अशोकनगर व राजगढ़ जिलों में ऐसा ही हुआ।
तो अतिथि की जरूरत ही न पड़े
अतिशेष शिक्षकों की पोस्टिंग न होने के कारण ज्यादा अतिथि शिक्षक भर्ती करने पड़ रहे हैं। यदि अतिशेष शिक्षकों की कम शिक्षक संख्या वाले स्कूलों में पोस्टिंग कर दी जाए तो अतिथि शिक्षक भर्ती ही नहीं करने पड़ेंगे। राजगढ़ और रीवा जिलों में 1300 से अधिक अतिशेष शिक्षक हैं, जबकि यहां पर अतिथि शिक्षकों की जरूरत सिर्फ एक-एक हजार की है।
जरूरत से ज्यादा शिक्षक
भोपाल शहर के छोला प्राइमरी स्कूल में 271 बच्चों पर 16 शिक्षक हैं, जबकि यहां पर सिर्फ 7 शिक्षकों की आवश्यकता है। यहां 9 शिक्षक अधिक हैं। कुछ ऐसा ही पुराने भोपाल के वाघमुफ्ती प्राइमरी स्कूल में 216 बच्चों पर 10 शिक्षक हैं। यहां सिर्फ 6 की आवश्यकता है, जबकि 4अधिक हैं।
इंदौर की स्थिति
शहर के राजेंद्र नगर कन्या शाला स्कूल में 284 बच्चों पर 12 शिक्षक हैं। यहां सिर्फ 8 की जरूरत है, जबकि 4अधिक हैं। नंदन नगर में 56 बच्चों पर 6 शिक्षक हैं, जबकि जरूरत सिर्फ दो की है। चार शिक्षक अधिक हैं। अत्री देवी सुदामा नगर में 353 बच्चों पर 13 शिक्षक हैं, जबकि जरूरत सिर्फ 9 की है। 4 शिक्षक अधिक हैं।
दो बच्चों पर तीन शिक्षक
रीवा शहर से दो किमी दूर अतरौली प्राइमरी स्कूल में महज 2 बच्चे पर 3 शिक्षक हैं। शहर से ही तीन किमी दूर जौन्ही में 4 बच्चों पर 2 शिक्षक हैं। शहर के प्रमुख चौराहे से महज चार किमी दूर खोबर प्राइमरी स्कूल में 25 बच्चों पर 5 शिक्षक हैं। 4 की जगह 9 दतिया शहर के रिछरा फाटक प्राइमरी स्कूल में 76 बच्चों पर 9 शिक्षक हैं, जबकि यहां सिर्फ 4 की जरूरत है। 5 शिक्षक अतिशेष हैं। ड़ौनी मुख्यालय के प्राइमरी स्कूल में 73 बच्चों पर 8 शिक्षक हैं, जबकि सिर्फ 5 की जरूरत है।
सीधी बात- एसआर मोहंती, अपर मुख्य सचिव, स्कूल शिक्षा विभाग
पहले युक्तियुक्तकरण फिर किए जाने हैं अतिथि
सवाल- प्रदेश के 21 जिलों में युक्तियुक्तकरण प्रक्रिया पूरी करे बगैर अतिथि शिक्षकों की भर्ती शुरू कर दी गई है। जवाब- नियमानुसार पहले युक्तियुक्तकरण प्रक्रिया पूरी करनी है, उसके बाद ही अतिथि शिक्षकों की भर्ती शुरू होनी थी। युक्तियुक्तकरण प्रक्रिया जून तक पूरी करनी थी।
सवालः जिन जिलों में नियमों का उल्लंघन हो रहा है, वहां क्या कार्रवाई की जाएगी। जवाब- पहले हम जिला शिक्षा अधिकारियों से बात करेंगे कि वो ऐसा क्यों कर रहे हैं।
सवालः कुछ जिलों में डीईओ युक्तियुक्तकरण प्रक्रिया पर शासन स्तर से रोक का बहाना बना रहे हैं। जवाबः सरकार ने रोक कहीं नहीं लगाई है, जहां से गड़बड़ी की शिकायतें आईं, वहां नए सिरे से प्रक्रिया शुरू करने के लिए कहा था। जो भी डीईओ ऐसा कह रहा है, उसका नाम बताया जाए।
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